रविवार, 24 जुलाई 2011



ॐ नमः शिवाय 
यह हमारी परम्परा है और हमारी पहचान भी कि हम आज भी सदियों से सावन मास में कांवर ले जाने कि परम्परा को आज भी कायम रखे है . शिव के प्रति हमारी असीम भक्ति ही हमें इतनी सबलता देती है कि हम कष्ट  सहकर भी जलार्पण को तत्पर रहते  है . हे भोले नाथ अपनी कृपा बनाये रखे और नयी पीढ़ी में भी यही जोश भरते रहें , यही हमारी कामना है.

शनिवार, 23 जुलाई 2011

                      सावन में बोलबम
आया सावन और शुरू हो गयी बोलबम की गूंज . सुल्तान गंज से लेकर देवघर और बासुकीनाथ तक कांवरियों की भीड़  ने एक अलग समां बाँध रखा है. येही नहीं हर शिवालय अपना एक अलग महत्व रखते हैं और सभी जगह बोलबम का नारा सुनाई पड़ता है. इस नारे में ऐसा जोश है जो कठिन डगर को भी आसान बना देता है . मनो भक्त अंगारे पर फूल समझ कर चल रहा है और उसे बड़ी शीतलता मिल रही है.
          कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय शिव ने विष पान किया था तथा वो सावन का ही समय था अतः  इस महीने जल चढाने कि प्रथा चल पड़ी. समुद्र मंथन का मुख्या केंद्र मंदार पर्वत था जो बौंसी में है . यह भागलपुर के समीप ही है . इसके थोड़ी दूर ही बाबा बासुकीनाथ  का मंदिर है . शिव के प्रदेश के नाम से विख्यात यह छेत्र अलग छठा लिए हुए है . असीम शांति मिलती है यहाँ भोलेनाथ के धाम में.
                    भोलेनाथ सबकी मुराद पूरी करते है  तो आस्था का सैलाब बढेगा ही. क्या बच्चे और क्या बड़े सभी आस्था से भरे है. बाबा नगरिया दूर है लेकिन जाना जरुर है. ये  नारा सबके होठो से निकल रहा है. जो लोग नहीं जाते है वे कांवर यात्रियों कि सेवा कर पुण्य कम रहे है. यह पवन मास बड़ा ही आनंदमय है .