मंगलवार, 21 जून 2011

एक अनुभूति जो जीवन को बदल दे , रास्ता वो दिखाए जो सीधा और सरल हो, तमाम मुश्किलें हो फिर भी वो अनुभूति हमारी हिम्मत बने .
                 मुझे याद है जब मई पहली बार बासुकीनाथ मंदिर गयी थी, वो भी सावन में और बाबा के दरबार में जल चढ़ने के बाद वाही खड़ी होकर रोने lagi पता नहीं क्यों. यह कैसी अनुभूति थी जो मुझे मै से निकालकर पता नहीं किस दुनिया में ले गयी थी . काश की वो अनुभूति फिर से होती.
              मेरा जाना भी एक संयोग ही था और वो भी सावन में बाबा को जल चढ़ाना कितना मुस्किल होता है फिर भी पता नहीं कैसे मुझे मौका मिल गया और स्वयं रास्ता बनता गया . मै अपना सुध बुध कोगायी थी. कितनी मीठी थी वो अनुभूति.

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