गुरुवार, 24 नवंबर 2011

        मन

मन एक आकाश है
जहाँ तारे हैं, सूरज है और चाँद भी 
एक चंचलता है 
आजादी उड़ने की है और स्थिरता भी 
एक आवाज है 
अपनी और प्रकृति की भी 
काश!
कि खो जाते मन में 
हो जाते मन के
छुट जाती चिंताएं 
भूल जाती इच्छाएं 
बस होता 
एक उन्मुक्त  गगन
एक खाली मन 
और होती हमारी ऊँची उड़ान 
मन से मन तक . 
 
    





  

रविवार, 30 अक्तूबर 2011

surya shashti vrata

                                                     पवित्र व्रत सूर्य षष्ठी 
 आस्था के समुन्दर में डुबकी लगाते ही हमारा मन पवित्र हो जाता है. आज से बिहार और उत्तरप्रदेश का सबसे आस्थावान व्रत छठ शुरू हो चूका है . नहाय-खाय या फिर कद्दू-भात खाने से आरम्भ होने वाला ये व्रत काफी कठिन होता है. व्रती आज स्नान कर पवित्र होकर प्रथम आहार के रूप में कद्दू-भात खाती हैं . अगले दिन खरना होता है जिसमे रसिया जो गुड और चावल से बनता है उसे दिन भर निर्जला रह रात में खाती है. उसके अगले दिन भी निर्जला रह शाम को भगवन भाष्कर को अर्घ्य देती हैं पुनः अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देती हैं और तब प्रसाद से पारण करती हैं. इस तरह यह तीन दिनों के उपवास वाला कस्तपूर्ण व्रत पूर्ण होता है.   

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

              जय गणेश देवा 
 बड़ी धूमधाम है, गणेश जी का आगमन जो हो चूका  है और साथ में है नए  गानों की धूम. गणेश जी प्रसन्न हो या  न  हो भक्त  तो प्रसन्न हैं. बजे गाजे  के  साथ मस्ती भी  खूब हो  रही है और  रात में ये  मस्ती और भी बढ़  जाती है. 
              मुझे गणेश सबसे  अच्छे   देवता लगते हैं  क्योंकि मई उन्हें हर साल राखी जो बांधती हूँ और  बदले  में कुछ  मांगती  भी हूँ लेकिन अभी  तक जिस  चीज  की ज्यादा  मांग की वो नहीं मिला. एस बार भी राखी  बांधी और धमकी  देकर अपना तोहफा मांगी .  क्योंकि वे ही ऐसे हैं  जिनसे मै सारी बाते  बोलती  हूँ और  झगड़ा भी करती हूँ. 
            उनको जो  देना है देंगे  पर  मैं उनसे अभी नाराज हूँ. एक  बात है, हम जब  भगवन को अपने बीच  मानने लगते हैं तो  सब कुछ आसन सा लगता है और हमारी  सोंच भी उनके दैवी स्वरूप  को छोड़ मानवी स्वरूप में  बदल जाती है.
    आशा है इस  बार वे सबकी सुनेगे.

 

सोमवार, 8 अगस्त 2011

शिव के शाश्वत स्वरुप  का वर्णन अनंत है और हम  bholenath के स्वरुप की jitni गहराई में गोता लगाएँगे उतनी ही अभूतपूर्व शांति milegi .
               

गुरुवार, 4 अगस्त 2011


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रविवार, 24 जुलाई 2011



ॐ नमः शिवाय 
यह हमारी परम्परा है और हमारी पहचान भी कि हम आज भी सदियों से सावन मास में कांवर ले जाने कि परम्परा को आज भी कायम रखे है . शिव के प्रति हमारी असीम भक्ति ही हमें इतनी सबलता देती है कि हम कष्ट  सहकर भी जलार्पण को तत्पर रहते  है . हे भोले नाथ अपनी कृपा बनाये रखे और नयी पीढ़ी में भी यही जोश भरते रहें , यही हमारी कामना है.

शनिवार, 23 जुलाई 2011

                      सावन में बोलबम
आया सावन और शुरू हो गयी बोलबम की गूंज . सुल्तान गंज से लेकर देवघर और बासुकीनाथ तक कांवरियों की भीड़  ने एक अलग समां बाँध रखा है. येही नहीं हर शिवालय अपना एक अलग महत्व रखते हैं और सभी जगह बोलबम का नारा सुनाई पड़ता है. इस नारे में ऐसा जोश है जो कठिन डगर को भी आसान बना देता है . मनो भक्त अंगारे पर फूल समझ कर चल रहा है और उसे बड़ी शीतलता मिल रही है.
          कहा जाता है कि समुद्र मंथन के समय शिव ने विष पान किया था तथा वो सावन का ही समय था अतः  इस महीने जल चढाने कि प्रथा चल पड़ी. समुद्र मंथन का मुख्या केंद्र मंदार पर्वत था जो बौंसी में है . यह भागलपुर के समीप ही है . इसके थोड़ी दूर ही बाबा बासुकीनाथ  का मंदिर है . शिव के प्रदेश के नाम से विख्यात यह छेत्र अलग छठा लिए हुए है . असीम शांति मिलती है यहाँ भोलेनाथ के धाम में.
                    भोलेनाथ सबकी मुराद पूरी करते है  तो आस्था का सैलाब बढेगा ही. क्या बच्चे और क्या बड़े सभी आस्था से भरे है. बाबा नगरिया दूर है लेकिन जाना जरुर है. ये  नारा सबके होठो से निकल रहा है. जो लोग नहीं जाते है वे कांवर यात्रियों कि सेवा कर पुण्य कम रहे है. यह पवन मास बड़ा ही आनंदमय है .

मंगलवार, 21 जून 2011

एक अनुभूति जो जीवन को बदल दे , रास्ता वो दिखाए जो सीधा और सरल हो, तमाम मुश्किलें हो फिर भी वो अनुभूति हमारी हिम्मत बने .
                 मुझे याद है जब मई पहली बार बासुकीनाथ मंदिर गयी थी, वो भी सावन में और बाबा के दरबार में जल चढ़ने के बाद वाही खड़ी होकर रोने lagi पता नहीं क्यों. यह कैसी अनुभूति थी जो मुझे मै से निकालकर पता नहीं किस दुनिया में ले गयी थी . काश की वो अनुभूति फिर से होती.
              मेरा जाना भी एक संयोग ही था और वो भी सावन में बाबा को जल चढ़ाना कितना मुस्किल होता है फिर भी पता नहीं कैसे मुझे मौका मिल गया और स्वयं रास्ता बनता गया . मै अपना सुध बुध कोगायी थी. कितनी मीठी थी वो अनुभूति.